‘सांप-सपेरे’ की छवि वाला देश कहीं ‘बलात्कारियों का देश‘ ना हो जाए
हैदराबाद के शादनगर में रहने वाली 27 वर्षीय पशु चिकित्सक महिला डॉक्टर अपने घर से 30 किलोमीटर दूर साइबराबाद में एक पशु चिकित्सालय में कार्यरत थी। वह हर दिन हैदराबाद-बेंगलुरु नेशनल हाईवे स्थित टोंडुपल्ली टोल प्लाजा पर अपनी स्कूटी पार्क करती थी और वहां से कैब लेकर अस्पताल तक जाती थी। रोज की तरह 27 नवंबर 2019 को करीब रात 9:00 बजे जब डॉक्टर टोल प्लाजा पर लौटी, तो उसकी स्कूटी पंक्चर थी। युवती ने अपनी बहन को फोन किया और कहा कि उसे डर लग रहा है, आसपास के सभी लोग उन्हें घूर रहे हैं। युवती की बहन उन्हें स्कूटी छोड़कर कैब से घर आने के लिए कहती है लेकिन डॉक्टर जवाब देती है कि उन्हें अगले दिन भी काम पर जाना है इसलिए स्कूटी लाना बहुत ज़रूरी है। डॉक्टर ने बहन को कहा कि कुछ लोगों ने मदद की पेशकश की है और थोड़ी देर बाद कॉल करती हूं। फिर इसके बाद युवती का मोबाइल फोन स्वीच ऑफ हो गया। परिजनों ने रात 11 बजे शादनगर टोल प्लाजा जाकर लेडी डॉक्टर की खोजबीन की, लेकिन वह नहीं मिलीं। महिला डॉक्टर के साथ गैंगरेप किया गया और बाद में गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी गईं। उसके शव को पेट्रोल छिड़ककर जला दिया गया। जानवरों का इलाज़ करने वाली डॉक्टर इंसानरुपी जानवर के हैवानियत का शिकार बन गई।
देश में बलात्कारियों की फ़ौज कोई दुसरे ग्रह से नहीं आती है, हर एक बलात्कारी किसी का बेटा, भाई या पति होता है।
इस हैवानियत वारदात के बाद देश में आक्रोश का माहौल है। हर बार की तरह इस शर्मशार घटना पर नेता झूठे आश्वासन दे रहे है, बॉलीवुड के सितारे ट्वीट कर रहे है, सोशल मीडिया पर बलात्कारियों को कड़ी से कड़ी सजा देने के लिए हैशटैग ट्रेंड कर रहे है, मीडिया को महाराष्ट्र की राजनीती के कवरेज के बाद समय मिलता है तो मगरमच्छ के आंसू बहा लेती है और जनता मोमबत्ती मार्च कर विरोध प्रदर्शन कर रही है । कुछ दिनों का इंतज़ार कीजिए, नेता अपनी राजनीतिक रोटी सेकने में व्यस्त हो जाएंगे , बॉलीवुड के सितारे अपनी फिल्मो में , सोशल मीडिया पर हैदराबाद रेप के विरोध में आया तूफ़ान थम जाएगा और कोहली की वेस्ट इंडीज के खिलाफ सेंचुरी सोशल मीडिया पर ट्रेंड करेगी, मीडिया पाकिस्तान में टमाटर की कीमत, मंदिर -मस्जिद और अभिनेत्रियों की शादियों के एक्सक्लूजिव तस्वीरों को बेचने में व्यस्त हो जाएगी और समाज में बलात्कारियों की नई फ़ौज तैयार होगी और एक नई युवती उनका शिकार होगी। अगर आपको मेरी बातों पर तनिक भी शंका है तो 16 दिसंबर, 2012 को दिल्ली में घटित हुए निर्भया कांड को याद कीजिए। जिस तरह निर्भया को मदद का भरोसा देकर बस में बैठा लिया गया था, उसी तरह मदद का झांसा यहां भी देकर इंसानियत को शर्मसार कर दिया गया। निर्भया कांड के बाद पूरे देश में तमाम प्रदर्शन हुए, संसद के दोनों सदनों में जोरदार हंगामा हुआ। तत्कालीन गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने संसद को आश्वासन दिया कि आरोपियों को जल्द से जल्द सज़ा दिलवाने की सरकार की ओर से हर संभव कोशिश की जा रही है। इतना हाई-प्रोफाइल केस होने के बाद भी 9 महीने बाद 13 सितंबर 2013 को निचली अदालत ने चारों आरोपियो को फांसी की सजा सुनाई थी, जिसके बाद केस हाईकोर्ट को रेफर कर दिया गया था। 13 मार्च, 2014 को दिल्ली हाईकोर्ट ने चारों आरोपियों की फांसी की सजा को बरकरार रखने का फैसला सुनाया। 5 मई, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की सज़ा बरकरार रखी। 9 जुलाई, 2018 को दोषियों की ओर से दाखिल की गई पुनर्विचार याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए मौत की सजा को बरकरार रखा। अभी इन दरिन्दे भेड़ियो की दया याचिका राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास विचाराधीन है। इस टाइम लाइन को बताने के पीछे मेरी मंशा का पता आपको चल ही गया होगा। महिलाओं के खिलाफ अपराधों का यह ताना—बाना निर्भया कांड के बाद भी वही ‘ढाक के तीन पात’ जैसी स्थिति को बताने के लिए काफी है। मतलब बदला कुछ नहीं, कैशलेस सोसायटी अभी भी क्राइमलेस नहीं हुई है। हम उस देश में रहते है जहाँ कोर्ट रविवार को महाराष्ट्र में सरकार बनने के प्रक्रिया पर सुनवाई करती है लेकिन बलात्कार जैसे जघन्य अपराध की पीड़िता को 7 साल बाद भी इंसाफ नही मिलता । स्कूल में पढ़ रही छोटी बच्ची जब समाचार में लड़कियों के खिलाफ़ समाज की हैवानियत की खबरें पढेगी तो क्या वह भारतीय होने पर गर्व महसूस करेगी ?
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के रिकॉर्ड के अनुसार साल 2017 में भारत में 32,559 बलात्कार के मामले रिपोर्ट हुए और 93।1% मामलों में आरोपी, पीड़ित को जानने वालों में से थे । यानी हमारे देश में हर रोज लगभग 90 रेप होते है । आप जब यह आर्टिकल पढ़ रहे है तो मुमकिन है कि देश के किसी कोने में किसी महिला के साथ बलात्कार जैस जघन्य अपराध हो रहा हो। आपको एक और आँकड़ा बताता हूँ , भारत में लड़कियों के साथ रेप के जितने मामले दर्ज होते हैं, उनमें से सिर्फ़ 28 प्रतिशत मामलों में दोषियों को सज़ा मिल पाती है।
सबसे महत्वपूर्ण सवाल ये है कि आखिर किस तरह से महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराध पर अंकुश लगाया जाए? क्या बलात्कार को जड़ से खत्म करना मुमकिन है ? हम खुद पर और इस देश पर लगे कलंक को कैसे मिटाएं? कैसे हम सही अर्थों में आधुनिक और सभ्य बनें? इन सवालो के जवाब को ढूँढ़ते हुए फिर से हैदराबाद रेप केस का रूख करते है। महिला डॉक्टर के परिवार का आरोप है कि जब युवती रात के 11 बजे तक घर नहीं आई तो वे टोंडुपल्ली टोल प्लाजा के नजदीकी साइबराबाद पुलिस स्टेशन गए, पुलिस मामले को टालती रही और मदद करने से इनकार कर दिया। साइबराबाद पुलिस ने परिवारवालों को शमशाबाद ग्रामीण पुलिस स्टेशन में जाने को कहा क्योंकि पीड़िता का अंतिम लोकेशन टोल प्लाजा उसी के अंतर्गत आता है। डॉक्टर की बहन ने कहा कि अगर पुलिस ने तत्काल कार्यवाई की होती, तो मेरी बहन आज जिंदा होती। डॉक्टर की मां ने दोषियों को जिंदा जला दिए जाने की मांग की।जब भी बलात्कारियों को कड़ी सजा देने का समर्थन किया जाता है तो देश के बड़े-बड़े बुद्धिजीवी, मीडिया और राजनेताओं को इसमें मानवाधिकार का हनन दिखता है। बुद्धिजीवियों, मीडिया और राजनेताओं को पता होना चाहिये कि मानवाधिकार केवल मानवों जैसी हरकत करने वालों के लिए होता है, जो व्यक्ति मानवों जैसी हरकत ही नहीं करता उसके लिए कैसा मानवाधिकार? बलात्कारियों का कोई मानवाधिकार नहीं होता है। वास्तव में बलात्कार जैसा घिनौना कृत्य करने वाले लोग दानव के समान होते हैं।
देश में बढते बलात्कार की बढती घटनाओं से साफ़ है कि अपराधियों में कानून का खौफ नहीं है, उन्हें लगता होगा कि वे कुकर्म कर के बच जाएंगे । कानून का खौफ अगर कानून तोड़ने वालों के बीच लाना है तो कानून को कड़े फैसले लेने होंगे । अपराधियों का ये भरोसा कि अंततः वे बच ही जायेंगे, दरअसल अपराध की सबसे बड़ी वजह है। हर बलात्कारी ये मान कर ही अपराध करता है कि वो पकड़ा नहीं जाएगा या पकड़े जाने पर वह आसानी से कानून के हाथ से बच जाएगा । हमें पुलिस और न्याय-व्यवस्था को शाबासी देनी चाहए कि उन्होंने बलात्कारियों को ऐसा सोचने की भरपूर वजहें मुहैया कराई हैं।
बलात्कार जैसे अनुचित कृत्यों को रोकने की जिम्मेदारी सिर्फ कानून और नेताओं की नहीं है।समाज के सहयोग के बिना बलात्कार को जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता है।देश में बलात्कारियों की फ़ौज कोई दुसरे ग्रह से नहीं आती है, हर एक बलात्कारी किसी का बेटा, भाई या पति होता है। समाज को अपनी सोच बदलनी पड़ेगी और इस सोच की शरुआत अपने घर के लड़कों से करनी होगी। आज भी समाज का एक वर्ग पीड़िता को ही बलात्कार के लिए जिम्मेदार ठहराता है। जो कि गलत है। आज जरूरत है समाज को महिलाओं के लिए अपनी सोच बदलने की, अगर समाज की सोच बदलेगी तो तभी शीशे पर जमी धूल साफ होगी और समाज का साफ-सुथरा चेहरा दिखेगा।
अगर राजनेता, समाज, पुलिस और कानून ने बलात्कार जैसे गंभीर मुद्दों पर जल्द ही कुछ नही किया तो भारत को ‘बलात्कारियों का देश ‘ के नाम से कलंकित होने से कोई नही रोक सकता । निर्णय देश को लेना है की भारत की छवि सांप-सपेरे वाले देश से बदल कर ‘बलात्कारियों का देश ‘ बनाना है या महिलाओं के लिए एक सुरक्षित देश। दुआ करें की , ‘Republic of India’, ‘RapePublic of India’ ना हो जाए ।